प्रतिनिधि
इचाक । जगरनाथ महतो इंटर महाविद्यालय, उरूका के प्रोफेसर राजेंद्र यादव छठ महापर्व को एकता, भाईचारा और प्रेम का अदभुत संगम बताया है। इन्होंने छठ महापर्व में समाज के हर तबके के लोगों के सहयोग को इस पर्व के माध्यम को एक अनोखा संयोग बताया है। कहा कि प्रकृति के ऐसे महापर्व जो जात-पात को पाटकर हमें महामानव बनने की प्रेरणा देती है । जैसे सूप वो भी हरा बांस के तुरी भाई के यहाँ से, मिट्टी के ढक्कन और हाँड़ी कुम्हार भाई के यहां से माली के यहां से फूल पान की पत्ती इत्यादि नहीं आएगा तो छठ नहीं होगी।
डेम्भा, पानीफल, बैर, ईख ,आदी, केला, अमरूद, शरीफा, मटर ,मूली सुथनी, नारियल तमाम फल जो गाँवों से जुड़े है विशेष कर केला का कांधी, ठेकुआ, गुड़ वाला खीर, रोटी चूल्हे पर बना हुआ, वह भी आम की लकड़ी से, कुएं के जल से और घाट पर सब एकसाथ एक कतार, एक पंक्ति में खड़े हुए न कोई जाति न कोई धर्म सब भाईचारे से सराबोर, शहर तो शहर देश- विदेश से भी लोग अपने गाँव घर आये। सबसे मिलकर खुश हुए, सबके डाला या दौरा पर जल दिए,सबकी माँ बहनों से आशीष लिए, सभी एक दूसरे को प्रसाद भेंट किए, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह दिखा कि छठ पुरे निष्ठा से स्त्री पुरुष दोनों करते है ।
भेद भाव को मिटाने वाला सबको समरूपता की पंक्ति में खड़ा करने वाला महापर्व छठ, महज आपको पूजा लगता होगा। मुझे तो सादगी और प्रेम का प्रतिरूप लगता है।
मिट्टी से बने बर्तन का, जल में सूर्य की उपासना करते लोग सद्भावना व भाईचारे से सुगन्धित हवाएं, प्रेम से हर तबके के जलते घाट के दिए यह पंच तत्व का संगम प्रकृति पूजन है। प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक अनोखा अनमोल व अद्वितीय समाहार है। इसे समझने के लिए मन की पावनता के द्वार खोल कर देखिये, छठ प्रेम है समाज के प्रति, प्रकृति के प्रति।एक ऐसा त्यौहार जो चार दिन चला न कोई दंगा न इंटरनेट कनेक्शन काटा गया, न किसी शांति समिति की बैठक हुई, न चंदे के नाम पर गुंडा गर्दी हुई और जबरन उगाही भी नहीं ।
शराब की दुकाने बंद रखने का नोटिस नहीं चिपकना पड़ा, उंच – नीच का भेद नहीं देखा गया, व्यक्ति-धर्म विशेष के जयकारे नहीं लगाए गए, किसी से अनुदान और अनुकम्पा की अपेक्षा नहीं दिखी, राजा रंक एक कतार में खड़े हुए, समझ से परे रहने वाले मंत्रो का उच्चारण नहीं सुने और दान दक्षिणा का रिवाज नहीं देखा गया। प्रकृति के ऐसे महा पर्व .छठ_पूजा है।
इसे करने के लिए चंदा नहीं जुटाया जाता, हां परिवार और समाज को जरूर जुटाकर एक अद्भुत मिसाल क़ायम होता हैं।
छठ एकता है,अखण्डता है
छठ आदर है, सद्भावना है
छठ प्रेम है, अराधना है
छठ प्रकृति है, पावनता है
छठ जज्बात है निश्चलता है
छठ नदियों की कलकलाहट है, खगो की चंचलता है
छठ मिट्टी की सुगंध है, अन्नपूर्णा की सौन्दर्यता है
छठ रिश्तों का समाहार है,भाईचारा है
छठ वास्तविक हिंदुस्तान का अद्भुत नजारा है।
