धनबाद । कोयलांचल में सावन मास में सभी शिवालयों पर काफी संख्या में भक्त इकट्ठा होकर भोलेनाथ पर जल चढ़ाने पहुंच रहे हैं। ऐसे में आज सावन माह का तीसरा सोमवार है। सुबह से ही श्रद्धालु महिला-पुरुष और बच्चे-बूढ़े मंदिर पहुंच रहे हैं। जहां बाबा भोलेनाथ को जल अर्पित किया जा रहा हैं। इन शिवालयों में पुजारी मंत्र उच्चारण कर विधि-विधान से भोलेनाथ की पूजा अर्चना में जुटे हुए हैं।

भोलेनाथ के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनका अभिषेक कर रहे हैं। भक्त उन्हें पंचामृत, दूध या जल का अभिषेक करते हैं।
जिस प्रकार पूजा के लिए जल की पवित्रता आवश्यक है, उसी प्रकार पूजा की पवित्रता भी आवश्यक है।

शिव-पार्वती जल अर्पण के नियम : शिवजी को जल चढ़ाते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि किस कलश से उन्हें जल चढ़ाया जाता है। शिवाभिषेक के लिए तांबे का पात्र सबसे अच्छा माना जाता है। कांसे या चांदी के पात्र से अभिषेक करना भी शुभ माना जाता है। लेकिन गलती से भी शिवजी का किसी स्टील के बर्तन से अभिषेक नहीं करना चाहिए। ठीक वैसे ही तांबे के बर्तन से दूध का अभिषेक करना भी अशुभ माना जाता है।

सही दिशा का महत्व : महादेव को जल चढ़ाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कभी भी पूर्व दिशा की ओर मुंह करके जल न चढ़ाएं। पूर्व दिशा को भगवान शिव का मुख्य प्रवेश द्वार माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिशा में मुख करने से शिवजी के द्वार में बाधा उत्पन्न होती है और वह रुष्ट भी हो सकते हैं। इसलिए हमेशा उत्तर दिशा की ओर मुख करके शिवजी को जल अर्पित करें। ऐसा कहा जाता है कि इस दिशा की ओर मुख करके जल चढ़ाने से शिव और पार्वती दोनों को आशीर्वाद मिलता है।
जल की धार की गति : देवधिदेव को जलाभिषेक करते समय शांत मन से धीरे-धीरे जल अर्पित करना चाहिए। मान्यता है कि जब हम धीमी धार से महादेव का अभिषेक करते हैं तो महादेव विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं। भोलेनाथ को कभी भी बहुत तेज या बड़ी धारा में जल नहीं चढ़ाना चाहिए।

जल अभिषेक करने का आसन :
शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय हमेशा बैठकर जल चढ़ाएं। रुद्राभिषेक करते समय कभी भी खड़े नहीं होना चाहिए। मान्यता के अनुसार खड़े होकर महादेव को जल चढ़ाने से इसका पुण्य फल भी नहीं मिलता है।

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