अजय कुमार जीतू
कतरास । हुल जोहार सन 1855 में, अंग्रेजों के जुल्म, शोषण और अत्याचार के विरुद्ध बिगुल फूंक कर, हमारी माटी छोड़ो का नारा देते हुए संघर्ष व बलिदान की गाथा लिखने वाले अमर शहीदों सिदो-कान्हो, चांद -भैरव व फूलो-झानो की याद में झामुमो के बाघमारा प्रखंड अध्यक्ष रतिलाल टुडू के आवासीय कार्यालय तिलाटांड में हुल दिवस के मौके पर कहि।उन्होंने हुल आन्दोलन के योद्धा को याद करते उनके चित्र पर माल्यार्पण किया।
श्री टुडू ने कहा कि संथाल विद्रोह 1773 ई. में स्थायी भूमि बन्दोवस्त व्यवस्था लागू हो जाने के कारण हमारी भूमि छीनकर जमींदारों को दे दी गयी जिससे जमीनदारी व्यवस्था तथा साहूकारों एवं महाजनों के द्वारा शोषण एवं अत्याचार निर्बाध रूप से अत्यधिक बढ़ गया। संथाल की दुर्दशा के लिए ब्रिटिश प्रशासन मुख्य रूप से उत्तरदायीं है और जिसके लिए ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह व आदर्श संसार का निर्माण करना स्वाभाविक था। 1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी।
इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को हुई, जो धीरे-धीरे सम्पूर्ण देश के विभिन्न हिस्सों और स्थानों में फैल गई, 30 जून, 1855 को 400 गांवों के करीब 50 हजार आदिवासी भोगनाडीह गांव पहुंचे और इस हुल क्रंति का यह आंदोलन ऐलान शुरू हो गया जिसमे हजारों आदिवासियों ने सिद्धो-कान्हू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका तथा इसी सभा में यह घोषणा कर दी गई कि वे अब कोई भी राजस्व का मालगुजारी ब्रिटिश शासन को नहीं देंगे ।
मौके पर अरुण दास, सुरेन्द्र चौहान,घलतु त्रिगुनाईत, मोना महतो, विक्की मालाकार,मुकेश गुप्ता, गोलू सिंह, संजय रजवार, मुकेश गुप्ता, राजेश चौधरी, बब्लू सिंह, संतोष सिंह, रौनक सिन्हा, अनिल उरांव, प्रकाश वर्मा, सुरज यादव, राजाराम यादव,विद्याधर मुर्मू,गणेश चौहान, संजय मंडल, कृष्णा चौहान,ओझा सहित अन्य लोग मौजूद थे।