निशिकांत मिस्त्री
जामताड़ा । आज जिले के ऐतिहासिक गाँधी मैदान में संताल परगना की 169 वाँ स्थापना दिवस धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम में झारखण्ड विधानसभा के अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुवे। जहां जे एम एम नेता आनंद टुडू, रविन्द्र नाथ दुबे, राजद नेता दिनेश यादव व अन्य वक्ता शामिल हुवे। वहीं इस कार्यक्रम में जिले के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों ने शिरकत की। जहां वक्ताओं ने संथाल के स्थापना ओर विशेषताओं के बारे में बताया है।
इस दिन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता बहुत खास है। यह दिन भारतीय इतिहास के उस अध्याय से जुड़ा है, जब आदिवासी समुदाय ने अपने अस्तित्व, अधिकार और अस्मिता की रक्षा के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक अद्वितीय संघर्ष किया था। संताल हुल (1855) के विद्रोह के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार को मजबूर होकर संताल परगना नामक एक अलग प्रशासनिक क्षेत्र का गठन करना पड़ा। इस क्षेत्र को विशेष रूप से संताल आदिवासियों के अधिकारों और उनके सांस्कृतिक, सामाजिक और भूमि संबंधी अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था। संताल परगना की स्थापना का सीधा संबंध 1855 के संताल हुल (संताल विद्रोह) से है। यह विद्रोह ब्रिटिश हुकूमत, स्थानीय ज़मींदारों और महाजनों के अत्याचारों के खिलाफ सिदो मुर्मू, कान्हू मुर्मू, चाँद मुर्मू, भैरव मुर्मू,फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू के नेतृत्व में हुआ था। सभी एक ही परिवार के थे। संताल आदिवासी समुदाय अपनी भूमि, जल, जंगल और आजीविका की सुरक्षा के लिए एकजुट हुआ और ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा किया।
संताल हुल के बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने महसूस किया कि आदिवासी समुदाय को दबाने के लिए केवल सैन्य बल ही पर्याप्त नहीं है। आदिवासियों के भूमि, जंगल और संस्कृति के प्रति विशेष लगाव को देखते हुए, ब्रिटिश शासन ने एक नई रणनीति अपनाई। 22 दिसंबर 1855 को ब्रिटिश सरकार ने संताल परगना क्षेत्र को एक स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में स्थापित किया। इस इकाई की भूमि और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए संताल परगना काश्तकारी अधिनियम बनाया गया। संताल परगना काश्तकारी अधिनियम सिर्फ आदिवासियों पर लागू नहीं होता है, बल्कि यह अधिनियम आदिवासी समुदाय के अलावे सभी समुदाय के काश्तकारों (किसानों) और भूमि धारकों पर भी लागू होता है जो संताल परगना क्षेत्र के भीतर भूमि का उपयोग करते हैं। इसका उद्देश्य भूमि पर आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना था, लेकिन इसके नियम और प्रावधान अन्य समुदाय के काश्तकारों पर भी लागू होते हैं। वहीं पत्रकारों से बात करते हुए विधानसभा अध्यक्ष रविन्द्र नाथ महतो ने कहा कि संथाल परगना संघर्ष की भूमि रहा है। सिदो मुर्मू, कान्हू मुर्मू, चाँद मुर्मू, भैरव मुर्मू,फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू ने अनन्याय के खिलाफ लड़े थे। जब जब इस धरती पर जुल्म, अन्याय अत्याचार हुआ हमारे आदिवासियों महापुरुषों ने उसका डट कर विरोध किया, आदिवासी समुदाय ने अपने अस्तित्व, अधिकार और अस्मिता की रक्षा के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक अद्वितीय संघर्ष किया था। संताल हुल (1855) के विद्रोह के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार को मजबूर होकर संताल परगना नामक एक अलग प्रशासनिक क्षेत्र का गठन करना पड़ा था। वहीं रविन्द्र नाथ महतो ने भाजपा से गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे पर बिना नाम लिए कहा कि इनलोगों ने संथाल परगना की अस्तित्व को अब मिटाने की बात कर रहे हैं, इन नेताओं का एक बयान आया था कि संथाल परगना समेत कुछ हिस्सा बिहार व कुछ हिस्सा पश्चिम बंगाल का मिलाकर एक अलग राज्य केंद्र शासित बनाने का माँग किया है। इसका मतलब यह हुआ कि आज भी इस क्षेत्र को लेकर षड्यंत्र चल रहा है। अगर यहां के लोग सचेत न रहे तो कभी भी कोई अनंर्थ हो सकता है।