कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई है। एक मानहानि केस में सूरत कोर्ट ने बीते गुरुवार को उन्हें दो साल की सजा सुनाई थी, जिसके बाद ये बड़ा फैसला आया। इससे न सिर्फ राहुल गांधी बल्कि कांग्रेस को भी बड़ा झटका लगा है। वह केरल के वायनाड से सांसद थे। मानहानि का मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरनेम को लेकर की गई टिप्पणी से जुड़ा हुआ है।

दरअसल, मामला कुछ यूं है कि साल 2019 में कर्नाटक के कोलार में एक जनसभा आयोजित की गई थी। इसमें राहुल गांधी ने पीएम मोदी के सरनेम को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उनके इस बयान के बाद बीजेपी विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पुरनेश मोदी ने याचिका दायर की थी।

अब आखिरी विकल्प कानूनी रास्ता अपनाने का-

कोर्ट के आदेश के बाद इस बात को लेकर बहस छिड़ गई थी कि क्या कांग्रेस नेता की लोकसभा सदस्यता चली जाएगी। कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने कहा था है कि वायनाड के सांसद दोषी ठहराए जाने के साथ ही स्वत ही अयोग्य साबित हो गए हैं। कुछ विशेषज्ञों ने कहा था कि वह अपनी अयोग्यता को चुनौती दे सकते हैं। हालांकि, आज लोकसभा सचिवालय ने पुष्टि की कि राहुल गांधी को संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया है। अब राहुल के सामने आखिरी विकल्प कानूनी रास्ता अपनाने का ही रह गया है। इसकी तैयारी भी उनकी कानूनी टीम ने शुरू कर दी है।

वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी कहा कि राहुल गांधी को दो साल की जेल की सजा के साथ ही सांसद के रूप में अयोग्य घोषित किया गया है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (3) के अनुसार, किसी भी अपराध के लिए दोषी पाए गए सांसद/विधायक को सजा की तारीख से अयोग्य घोषित किया जाता है।

सिब्बल बोले, हाई कोर्ट से फैसला रद्द होने पर ही राहत-

सिब्बल ने कहा कि अगर अदालत केवल सजा को निलंबित करती है, तो यह पर्याप्त नहीं है। निलंबन या दोषसिद्धि पर रोक होनी चाहिए। राहुल गांधी संसद के सदस्य के रूप में तभी बने रह सकते हैं जब दोषसिद्धि पर रोक लग जाए। सिब्बल ने कहा कि अगर उच्च न्यायालय फैसले को रद्द नहीं करता है, तो राहुल गांधी को अगले आठ साल तक चुनाव लड़ने की भी अनुमति नहीं दी जाएगी। इस बीच राहुल गांधी की कानूनी टीम सत्र अदालत में फैसले को चुनौती देने की कोशिश कर रही है।

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