झरिया । कोयलांचल वासियों को अब शव के अंतिम दाह-संस्कार के लिए लकड़ियों का जुटान नहीं करना पड़ेगा। इसके लिए धनबाद नगर निगम ने मोहलबनी दामोदर घाट के समीप विद्युत शवदाह गृह को शुरू करने की प्रक्रिया कर ली है। जिले का पहला इकलौता विद्युत शवदाह गृह मोहलबनी में दामोदर घाट के किनारे बन कर पूरी तरह तैयार है। जिसे इसी माह से शुरू कर दिया जाएगा।

एक करोड़ पचास लाख रुपए की लागत से तैयार किया गया यह विद्युत शवदाह गृह अगस्त माह में ही शुरू कर लिया जाएगा। जिसके लिए भवन निर्माण का कार्य पूरा हो चुका है। वही सारे इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इंस्टॉल कर लिए गए हैं। बस इसे शुरू करने के लिए फाइनल टच दिया जा रहा है।

एक्सपर्ट बताते हैं कि विद्युत शवदाह गृह में एक शव के डिस्पोजल होने में लगभग 1 घंटे का समय लग सकेगा। जिससे एक मशीन रोजाना लगभग एक दर्जन शव का निष्पादन कर लेगा।

मोहलबानी विद्युत शवदाह गृह की तकनीकी क्षमता : मोहलबनी में शुरू होने वाले विद्युत शवदाह गृह में 95 Kva की एक मशीन 100 Amp के लोड क्षमता के साथ शुरू होगा। जबकि भवन में दो हाल है। भविष्य में यहां एक और मशीन को इंस्टॉल किया जा सकेगा। वही शव दाह गृह के लिए झारखंड बिजली बोर्ड से 200 Kva का ट्रांसफार्मर लगाने की योजना है। जिससे दोनों मशीन बेहतर तरीके से संचालित हो सकेंगे। जबकि पावरकट होने की स्थिति में पूरी व्यवस्था जनरेटर से संचालित होगी। इसके लिए 200 Kva का डीजी सेट इंस्टॉल किया गया है।

पर्यावरण को प्रदूषण से बचाव के लिए अत्याधुनिक तकनीक : पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए यहां अत्याधुनिक तकनीक इस्तेमाल की गई है। जिसके तहत फर्नेश से निकलने वाला धुआं स्क्रबर में जाएगा और वहां पानी से फिल्टर होकर वह पुनः दूसरे स्क्रबर में जाएगा। जहां से आईडी फैन के माध्यम से फिल्टर होते हुए चिमनी के द्वारा 200 फीट की ऊंचाई पर निकल सकेगा। इससे पर्यावरण में प्रदूषण नाम मात्र होने की आशंका है।

प्रदूषण से मिलेगी राहत : एक्सपर्ट बताते हैं कि विद्युत शवदाह गृह के चालू होने से प्रदूषण से काफी राहत मिलेगी। पारंपरिक पद्धति से शव जलाने में करीब 450 किलो लकड़ी लगती है और वातावरण में 225 किलो कार्बनडाई-ऑक्साइड फैलता है। इसके अलावा करीब 50 किलो राख निकलती है, जिसे बाद में पानी में फेंक दिया जाता है। इससे भी प्रदूषण फैलता है। विद्युत शवदाह गृह में दाह संस्कार कराया जाए तो केवल 40 किलो कॉर्बनडाई-ऑक्साइड निकलती है, राख नाम मात्र की होती है।

एनजीटी भी माना है- पर्यावरण के लिए ठीक है : एनजीटी ने भी माना है कि पारंपरिक तरीके से शवदाह करना पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। जबकि विद्युत शव दाह गृह में शव को जलाने से प्रदूषण नाम मात्र की होती है। क्योंकि यह कई प्रकार के तकनीक को ध्यान में रखकर पूरा किया जाता है। जबकि पारंपरिक तरीके से शव के अंतिम संस्कार में लकड़ी की व्यवस्था के लिए होने वाली पेड़ों की कटाई से भी पर्यावरण पर असर पड़ता है।

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